जैसे जैसे दिन ढला और आसमान ने रात की चादर ओढ़ी, रमन और व्याकुल हो उठा। उस रात का हर क्षण उसे यही चिंता दिला रहा था कि ‘क्या पता, मेरे अलावा किसी और को इस बात से कोई फ़र्क न पड़े!’ या ‘शायद मेरे साथ कोई और न जुड़े!’ इसी चिंता में गुम उसने पूरी रात बिता दी।
सुबह उठकर वह अपने घर के पास एक जंगल में स्थित एक बरगद के पेड़ की ओर चला ही था कि दूर से छुटकी, उसकी पोती, दौड़ के आई और बोली “जल्दी चलिये दादाजी! वहाँ बहुत भीड़ जमा हो गयी है!” रमन के दिल की धड़कन तेज़ हो चली। क्या वाकई में लोग उसकी बात सुनने आए हैं?
जब वो स्थल पर पहुंचा तो चौंक उठा। ‘वृक्ष बचाओ’, ‘चलो धरती की रक्षा करें’, आदि नारों से सुसज्जित चिन्ह लेकर हर तरफ लोग खड़े थे। एक वृद्ध व्यक्ति उसके पास आकर हल्के से बोला, “हम यहाँ सिर्फ आपके लिए नहीं, अपने खुद के लिए आए हैं!”
रमन का मन उल्लास से भर गया। उसने अपना निश्चय और भी दृढ़ कर लिया। प्रकृति की रक्षा तो मानो उसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य बन गया। सालों की मेहनत रंग लायी, यह सोचकर वह डटकर लोगों के समक्ष खड़ा हुआ और उसके द्वारा शुरू की गयी पहल में जुडने के लिए उनका आभार व्यक्त किया।
रमन एक पिछड़े गाँव का निवासी था। बिजली, गैस तो क्या, पानी तक लाने के लिए रोज़ मिलों चलना पड़ता था और कतार में खड़ा रहना पड़ता था।रमन का परिवार शहद बेचकर अपना गुजारा करता था।जब भी वह कोई छत्ते से शहद निकालता, वह आधा छत्ता वहीं छोड़ देता, ताकि उस छत्ते की मूल निवासी मधुमक्खियाँ मायूस ना हो और उनके पास वापस आने के लिए कोई जगह बनी रहे।
यह छत्ता रमन के गाँव के पास एक बरगद के पेड़ पर स्थित था। इस जंगल में कई तरह के पशु पक्षी एवं जानवर निवास करते थे। इस जंगल से कई लोगों की ज़िंदगी जुड़ी थी, जो वहीं रहते थे और कई पीढ़ियों से अपना जीवन प्रकृति के साथ खुशी से रहकर बिताते थे।
एक दिन उस जंगल के पास एक फ़ैक्टरी खुली। रोजगार एवं अच्छी ज़िंदगी का लालच देकर उधर के निवासियों की ज़मीन ले ली गयी। कुछ महीनों में ही वो जंगल हल्के हल्के खत्म हो गया। पशु पक्षी एवं जानवर या तो खत्म हो गये या खत्म कर दिये गए। एक दिन वह पेड़ भी काट दिया गया जिससे रमन के परिवार की रोज़ी रोटी चलती थी।
अपने सामने यह सब होता देख रमन मायूसी से भर गया। उसने ठान लिया कि वह उन मूक वृक्षों और जानवरों के लिए बोलेगा और लड़ेगा। उसने अलग अलग गाँव में जाकर लोगों से इस विषय पर बातचीत की। एक दिन उसको यूएन की एक संस्था में ‘फॉरेस्ट रिजर्व ऑफिसर’ के पद पर रखा गया।
अपनी मुहिम जारी रख रमन ने रोज़ एक बीज बोकर आस पास के अकाल पीड़ित इलाकों को फिर से हरा भरा कर दिया। पशु पक्षी एवं जानवरों को रहने का नया स्थान दिया। एक बरगद के पेड़ के बीज से की गयी रमन की ये पहल जल्द ही क्रांति सी बनने लगी। कुछ ही वर्षों में कई लोग उसे मसीहा मानने लगे। देश विदेश से उसे बुलावे आने लगे। उससे प्रेरणा लेकर देश भर में हजारों लोग उसके पदचिन्हों पर चलने लगे। उसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
एक दिन जब उसने अपनी मेहनत से बनाए जंगल के पास एक फ़ैक्टरी के आने की खबर सुनी तो उसका दिल दहल गया। बीती हुई सारी दर्द भरी यादों ने उसे घेर लिया। उसने यह रोकने के लिए अपनी जान लगा देने का फैसला किया।
वह दिन उसकी सालों की मेहनत की परीक्षा थी। और अपने सामने इतने लोगों को देख उसे पता चल गया की वह अपनी जीवन भर की परीक्षा में सफल हो गया है। वाकई, लोगों ने उसकी पहल में जुड़ जुड़ के उसे एक कारवां बना दिया।
हर बीज जो बोया था, वो पाना था जो खोया था।
उस बरगद के लिए, जिसकी छाँव तले मैं सोया था॥